
लोकोक्तियाँ किसे कहते है ? लोकोक्तियाँ (proverbs) की परिभाषा उदहारण सहित |
लोकोक्तियाँ (proverbs) की परिभाषा
किसी विशेष स्थान
पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को 'लोकोक्ति' कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत
किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।
उदाहरण- 'उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' । यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं
होता' ।
'लोकोक्ति' शब्द 'लोक + उक्ति' शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन'। संस्कृत में 'लोकोक्ति' अलंकार का एक भेद भी है तथा सामान्य अर्थ में
लोकोक्ति को 'कहावत' कहा जाता है।
चूँकि लोकोक्ति का
जन्म व्यक्ति द्वारा न होकर लोक द्वारा होता है अतः लोकोक्ति के रचनाकार का पता
नहीं होता। इसलिए अँग्रेजी में इसकी परिभाषा दी गई है- ' A proverb is a saying
without an author' अर्थात लोकोक्ति
ऐसी उक्ति है जिसका कोई रचनाकार नहीं होता।
वृहद् हिंदी कोश
में लोकोक्ति की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-
'विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों और लोक विश्वासों आदि पर
आधारित चुटीली, सारगर्भित, संक्षिप्त, लोकप्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं, जिनका प्रयोग किसी बात की पुष्टि, विरोध, सीख तथा भविष्य-कथन आदि के लिए किया जाता है।
'लोकोक्ति' के लिए यद्यपि सबसे अधिक मान्य पर्याय 'कहावत' ही है पर कुछ विद्वानों की राय है कि 'कहावत' शब्द 'कथावृत्त' शब्द से विकसित हुआ है अर्थात कथा पर आधारित वृत्त, अतः 'कहावत' उन्हीं लोकोक्तियों को कहा जाना चाहिए जिनके
मूल में कोई कथा रही हो। जैसे 'नाच न जाने आँगन
टेढ़ा' या 'अंगूर खट्टे होना' कथाओं पर आधारित लोकोक्तियाँ हैं। फिर भी आज
हिंदी में लोकोक्ति तथा 'कहावत' शब्द परस्पर समानार्थी शब्दों के रूप में ही प्रचलित हो गए हैं।
लोकोक्ति किसी
घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के
सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे
निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब 'लोकोक्ति' हो जाती है।
लोकोक्ति : प्रमुख अभिलक्षण
(1)
लोकोक्तियाँ ऐसे
कथन या वाक्य हैं जिनके स्वरूप में समय के अंतराल के बाद भी परिवर्तन नहीं होता और
न ही लोकोक्ति व्याकरण के नियमों से प्रभावित होती है। अर्थात लिंग, वचन, काल आदि का प्रभाव लोकोक्ति पर नहीं पड़ता। इसके विपरीत मुहावरों की संरचना में
परिवर्तन देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए 'अपना-सा मुँह लेकर रह जाना' मुहावरे की संरचना लिंग, वचन आदि व्याकरणिक कोटि से प्रभावित होती है; जैसे-
(i) लड़का अपना सा मुँह
लेकर रह गया।
(ii) लड़की अपना-सा मुँह
लेकर रह गई।
जबकि लोकोक्ति में
ऐसा नहीं होता। उदाहरण के लिए 'यह मुँह मसूर की
दाल' लोकोक्ति का प्रयोग प्रत्येक स्थिति में यथावत
बना रहता है; जैसे-
(iii) है तो चपरासी पर
कहता है कि लंबी गाड़ी खरीदूँगा। यह मुँह और मसूर की दाल।
(2)
लोकोक्ति एक स्वतः
पूर्ण रचना है अतः यह एक पूरे कथन के रूप में सामने आती है। भले ही लोकोक्ति वाक्य
संरचना के सभी नियमों को पूरा न करे पर अपने में वह एक पूर्ण उक्ति होती है; जैसे- 'जाको राखे साइयाँ, मारि सके न कोय'।
(3)
लोकोक्ति एक
संक्षिप्त रचना है। लोकोक्ति अपने में पूर्ण होने के साथ-साथ संक्षिप्त भी होती
है। आप लोकोक्ति में से एक शब्द भी इधर-उधर नहीं कर सकते। इसलिए लोकोक्तियों को
विद्वानों ने 'गागर में सागर' भरने वाली उक्तियाँ कहा है।
(4)
लोकोक्ति
सारगर्भित एवं साभिप्राय होती है। इन्हीं गुणों के कारण लोकोक्तियाँ लोक प्रचलित
होती हैं।
(5)
लोकोक्तियाँ जीवन
अनुभवों पर आधारित होती है तथा ये जीवन-अनुभव देश काल की सीमाओं से मुक्त होते
हैं। जीवन के जो अनुभव भारतीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को होते हैं वे ही अनुभव
योरोपीय समाज में रहने वाले व्यक्ति को भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए निम्नलिखित
लोकोक्तियों में अनुभूति लगभग समान है-
(i) एक पंथ दो काज- To kill two birds with one
stone.
(ii) नया नौ दिन पुराना
सौ दिन- Old
is gold.
(6)
लोकोक्ति का एक और
प्रमुख गुण है उनकी सजीवता। इसलिए वे आम आदमी की जुबान पर चढ़ी होती है।
(7)
लोकोक्ति जीवन के
किसी-न-किसी सत्य को उद्घाटित करती है जिससे समाज का हर व्यक्ति परिचित होता है।
(8)
सामाजिक मान्यताओं
एवं विश्वासों से जुड़े होने के कारण अधिकांश लोकोक्तियाँ लोकप्रिय होती है।
(9)
चुटीलापन भी
लोकोक्ति की प्रमुख विशेषता है। उनमें एक पैनापन होता है। इसलिए व्यक्ति अपनी बात
की पुष्टि के लिए लोकोक्ति का सहारा लेता है।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरे |
लोकोक्तियाँ |
(1) मुहावरे वाक्यांश होते हैं, पूर्ण
वाक्य नहीं; जैसे- अपना उल्लू सीधा करना, कलम तोड़ना आदि। जब वाक्य में इनका प्रयोग होता तब ये
संरचनागत पूर्णता प्राप्त करती है। |
(1) लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य होती हैं। इनमें कुछ घटाया-बढ़ाया
नहीं जा सकता। भाषा में प्रयोग की दृष्टि से विद्यमान रहती है; जैसे- चार दिन की चाँदनी फेर अँधेरी रात। |
(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। |
(2) लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है। |
(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं। |
(3) लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग
हैं। |
(4) वाक्य में प्रयुक्त होने के बाद मुहावरों के रूप में लिंग, वचन, काल आदि व्याकरणिक कोटियों
के कारण परिवर्तन होता है; जैसे- आँखें पथरा जाना। |
(4) लोकोक्तियों में प्रयोग के बाद में कोई परिवर्तन नहीं
होता; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए। |
(5) मुहावरों का अंत प्रायः इनफीनीटिव 'ना' युक्त क्रियाओं के साथ होता
है; जैसे- हवा हो जाना, होश उड़
जाना, सिर पर चढ़ना, हाथ फैलाना
आदि। |
(5) लोकोक्तियों के लिए यह शर्त जरूरी नहीं है। चूँकि
लोकोक्तियाँ स्वतः पूर्ण वाक्य हैं अतः उनका अंत क्रिया के किसी भी रूप से हो
सकता है; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए, अंधी पीसे
कुत्ता खाए, आ बैल मुझे मार, इस हाथ दे, उस हाथ ले, अकेली
मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। |
(6) मुहावरे किसी स्थिति या क्रिया की ओर संकेत करते हैं; जैसे हाथ मलना, मुँह
फुलाना? |
(6) लोकोक्तियाँ जीवन के भोगे हुए यथार्थ को व्यंजित करती हैं; जैसे- न रहेगा बाँस, न बजेगी
बाँसुरी, ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती, नाच न जाने आँगन टेढ़ा। |
(7) मुहावरे किसी क्रिया को पूरा करने का काम करते हैं। |
(7) लोकोक्ति का प्रयोग किसी कथन के खंडन या मंडन में
प्रयुक्त किया जाता है। |
(8) मुहावरों से निकलने वाला अर्थ लक्ष्यार्थ होता है जो
लक्षणा शक्ति से निकलता है। |
(8) लोकोक्तियों के अर्थ व्यंजना शक्ति से निकलने के कारण
व्यंग्यार्थ के स्तर के होते हैं। |
(9) मुहावरे 'तर्क' पर आधारित नहीं होते अतः उनके वाच्यार्थ या मुख्यार्थ को
स्वीकार नहीं किया जा सकता; |
(9) लोकोक्तियाँ प्रायः तर्कपूर्ण उक्तियाँ होती हैं। कुछ
लोकोक्तियाँ तर्कशून्य भी हो सकती हैं; जैसे- |
(10) मुहावरे अतिशय पूर्ण नहीं होते। |
(10) लोकोक्तियाँ अतिशयोक्तियाँ बन जाती हैं। |
यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ व उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये जा रहे हैं-
( अ
)
अन्धों में काना
राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)
प्रयोग- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही; इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ
समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।
अकेला चना भाड़
नहीं फोड़ सकता= (अकेला आदमी बिना दूसरों के सहयोग के कोई बड़ा
काम नहीं कर सकता।)
प्रयोग- मैं जानता हूँ कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' फिर भी जो काम अपने करने का है, वह जरूर करूँगा।
अधजल गगरी छलकत
जाय= (जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता हैं, वह उसका प्रदर्शन या आडम्बर करता है।)
प्रयोग- रमेश बारहवीं पास करके स्वयं को बहुत बड़ा
विद्वान समझ रहा है। ये तो वही बात हुई कि अधजल गगरी छलकत जाय।
अब पछताए होत क्या
जब चिड़ियाँ चुग गई खेत= (समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है)
प्रयोग- सारे साल तुम मस्ती मारते रहे, अध्यापकों और अभिभावक की एक न सुनी। अब बैठकर
रो रहे हो। ठीक ही कहा गया है- अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
अन्धा बाँटे रेवड़ी
फिर-फिर अपनों को दे= (अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य केवल अपनों को
ही लाभ पहुँचाते हैं।)
प्रयोग- मालिक आगरा का है, इसलिए उसने आगरावासी को ही नियुक्त कर लिया। ये
तो वही बात हुई कि अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे।
अन्धा क्या चाहे
दो आँखें= (मनचाही बात हो जाना)
प्रयोग- अभी मैं विद्यालय से अवकाश लेने की सोच ही रही
थी कि मेघा ने मुझे बताया कि कल विद्यालय में अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या
चाहे दो आँखें।
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना= (मूर्खों को सदुपदेश देना या अच्छी बात बताना
व्यर्थ है।)
प्रयोग- मुन्ना को समझाना तो अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना वाली बात है।
अंधी पीसे, कुत्ते खायें= (मूर्खों की कमाई व्यर्थ में नष्ट हो जाती है।)
प्रयोग- रजनी अपने आपको बुद्धिमान समझती है, किन्तु उसका काम अंधी पीसे, कुत्ते खायें वाला है।
अंधेर नगरी चौपट
राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा= (जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं
होता।)
प्रयोग- मनोज की कंपनी में चपरासी और मैनेजर का वेतन
बराबर है, वहाँ तो कहावत चरितार्थ होती है कि अंधेर नगरी
चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।
अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे= (बुद्धिहीन, किन्तु धनवान)
प्रयोग- सेठ जी तो अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे हैं।
अक्ल बड़ी या भैंस= (बुद्धि शारीरिक शक्ति से अधिक श्रेष्ठ होती है।
प्रयोग- ये कहानी तो सबने पढ़ी ही होगी कि खरगोश ने अपनी
अक्ल से शेर को कुएँ में कुदा दिया था। यह कहावत मशहूर है कि अक्ल बड़ी या भैंस।
अति सर्वत्र
वर्जयेत्= (किसी भी काम में हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं
करना चाहिए।
प्रयोग- अधिकांश बच्चे परीक्षा के समय रात-दिन पढ़ते हैं
और बाद में फिर बीमार पड़ जाते हैं, यह कहावत सही है- अति सर्वत्र वर्जयेत्।
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग=(कोई काम नियम-कायदे से न करना)
प्रयोग- इस ऑफिस में तो जो जिसके मन में आता, वह करता है। इसी को कहते हैं- अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग।
अपनी गली में कुत्ता
भी शेर होता है= (अपने घर या गली-मोहल्ले में बहादुरी दिखाना)
प्रयोग- तुम अपने मोहल्ले में बहादुरी दिखा रहे हो। अरे, अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।
अपनी पगड़ी अपने
हाथ= (अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।)
प्रयोग- विवेक ने श्रीनाथ जी से कहा- आप यहाँ से चले
जाइए, क्योंकि अपनी पगड़ी अपने हाथ होती है।
अपने मुँह मियाँ
मिट्ठू= (अपनी बड़ाई या प्रशंसा स्वयं करने वाला)
प्रयोग-रामू हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनता है।
अमानत में खयानत= (किसी के पास अमानत के रूप में रखी कोई वस्तु
खर्च कर देना)
प्रयोग- अध्यापक ने हमें बताया कि अमानत में खयानत करना
अच्छी बात नहीं होती।
अस्सी की आमद, चौरासी खर्च= (आमदनी से अधिक खर्च)
प्रयोग-राजू के तो अस्सी की आमद, चौरासी खर्च हैं। इसलिए उसके वेतन में घर का
खर्च नहीं चलता।
अपनी करनी पार
उतरनी= (मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता है)
प्रयोग- आज अपना प्रवचन करते हुए स्वामी जी समझाया था
कि जो जैसा करता है वैसा ही उसे उसका परिणाम मिलता है। इस संसार सागर से पार जाने
के लिए अपने कर्मो को शुद्ध करो क्योंकि अपनी करनी पार उतरनी वाली बात ही जीवन में
सत्य होती है।
अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर = (एक तरफ फिजूलखर्ची, दूसरी ओर एक-एक पैसे पर रोक लगाना)
प्रयोग- सत्येंद्र रोज होटलों में दारू और जुए पर
हजारों रुपये उड़ा देता है लेकिन बेचारे कामगारों को उनका मेहनताना देने की बात आती
है तो आनाकानी और बहानेबाजी करता है। इसे कहते हैं कि एक ओर तो अशर्फियाँ लुटें, दूसरी ओर कोयलों पर मुहर।
अपना ढेंढर न देखे
और दूसरे की फूली निहारे= (अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना)
( आ
)
ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर= (काम करने पर उतारू होना)
प्रयोग- जब मैनें देशसेवा का व्रत ले लिया, तब जेल जाने से क्यों डरें? जब ओखली में सिर दिया, तब मूसलों से क्या डर।
आ बैल मुझे मार= (स्वयं मुसीबत मोल लेना)
प्रयोग- लोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम
आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार।
आँखों के अन्धे
नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना)
प्रयोग- उसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के
लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते है- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।
आँख का अन्धा नाम
नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना।)
प्रयोग- एक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने
दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई
लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और
बोला कि वाह जी शेरमार खाँ, आपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का
अन्धा नाम नयनमुख।
आँख के अन्धे गाँठ
के पूरे= (मूर्ख किन्तु धनवान)
प्रयोग- आप इस मकान का बहुत दाम मांग रहे हैं। इसे तो
वह खरीदेगा जो आँख के अन्धे और गाँठ के पूरे होगा।
आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ= नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाय, वही बहुत है।
प्रयोग- किसी के घर चोरी हुई। चोर नकद और जेवर कुल उठा
ले गये। बरतनों पर जब हाथ साफ करने लगे, तब उनकी झनझनाहट सुनकर घर के लोग जाग उठे। देखा तो कीमती माल सब गायब। घर के
मालिकों ने बरतनों पर आँखें डालकर अफसोस करते हुए कहा कि खैर हुई, जो ये बरतन बच गये। आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ। यदि ये भी चले गये होते, तो कल पत्तों पर ही खाना पड़ता।
आगे नाथ न पीछे
पगहा= (किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना)
प्रयोग- अरे, तुम चक्कर न मारोगे तो और कौन मारेगा? आगे नाथ न पीछे पगहा। बस, मौज किये जाओ।
आम के आम गुठलियों
के दाम= (अधिक लाभ)
प्रयोग- सब प्रकार की पुस्तकें 'साहित्य भवन' से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। 'आम के आम गुठलियों के दाम' इसी को कहते हैं।
आगे कुआँ, पीछे खाई= (दोनों तरफ विपत्ति या परेशानी होना)
प्रयोग- सुरेश के सामने तब आगे कुआँ, पीछे खाई वाली बात हो गई जब बदमाशों ने कहा कि
या तो वह गोली खाए या सारा सामान उनको दे दे।
आई मौज फकीर को, दिया झोंपड़ा फूँक= (वैरागी स्वभाव के पुरुष मनमौजी होते हैं।)
प्रयोग- उस वैरागी स्वभाव के मनुष्य ने जब अपनी सारी
सम्पत्ति गरीबों को दे दी, तब उसकी प्रशंसा करते हुए लोगों ने कहा- आई मौज
फकीर को, दिया झोंपड़ा फूँक।
आज हमारी, कल तुम्हारी= (जीवन में विपत्ति सब पर आती है।)
प्रयोग- यह नहीं भूलना चाहिए कि समय सदा बदलता रहता है-
आज हमारी, कल तुम्हारी।
आधी छोड़ सारी को
धावे, आधी रहे न सारी पावे= (अधिक लालच करना बुरा होता है)
प्रयोग- अधिक वेतन के चक्कर में रामू ने अपनी नौकरी छोड़
दी और अब उसकी वो नौकरी भी छूट गई; ये तो वही कहावत हो गई कि 'आधी छोड़ सारी को
धावे, आधी रहे न सारी पावे'।
आप काज, महा काज= (अपना काम स्वयं करने से ठीक होता है।)
प्रयोग- राजू अपना काम दूसरों पर नहीं छोड़ता। उसे स्वयं
करता है, क्योंकि उसका विश्वास है कि 'आप काज, महा काज'।
आये थे हरि-भजन को, ओटन लगे कपास= (आवश्यक कार्य को छोड़कर अनावश्यक कार्य में लग
जाना)
प्रयोग- सेठ हेमचंद अपने परिवार को लेकर गए तो थे मसूरी
प्रकृति का आनंद उठाने। पर लालच ने पीछा न छोड़ा और वहाँ जाकर भी सारा समय होटल में
बैठे रहे और फोन पर धंधे की बातों में ही लगे रहे। ऐसे लोगों के लिए ही कहा गया है
आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास।
आप भला तो जग भला= (दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए तो दूसरे
भी अच्छा व्यवहार करेंगे)
प्रयोग- तुम्हारे पिताजी बहुत ईमानदार हैं इसलिए सबको
ईमानदार समझते हैं। इसलिए कहा जाता है- आप भले तो जग भला।
आसमान से गिरे
खजूर में अटके= (एक मुसीबत खत्म न हो उससे पहले दूसरी मुसीबत आ
जाए)
प्रयोग- पिछले माह सेठ रामरतन को पुलिस ने काला बाजारी
के जुर्म में पकड़ा था। अभी उस झंझट से मुक्त भी नहीं हो पाए थे कि कल उनके यहाँ
इनकम टैक्स वालों की रेड पड़ गई, अब बेचारे सेठजी का क्या होगा क्योंकि उनकी हालत तो आसमान से गिरे खजूर में
अटके वाली है।
आप डूबे जग डूबा= (जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है।)
आग लगाकर जमालो
दूर खड़ी= (झगड़ा लगाकर अलग हो जाना)
आधा तीतर आधा
बटेर= (बेमेल स्थिति)
ओछे की प्रीत बालू
की भीत=(नीचों का प्रेम क्षणिक)
ओस चाटने से प्यास
नहीं बूझती= (अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता)
( इ, ई )
इतनी-सी जान, गज भर की जुबान= (बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करना)
प्रयोग- चार साल की बच्ची जब बड़ी-बड़ी बातें करने लगी तो
दादाजी बोले- इतनी सी जान, गज भर की जुबान।
इधर कुआँ और उधर
खाई= (हर तरफ विपत्ति होना)
प्रयोग- न बोलने में भी बुराई है और बोलने में भी; ऐसे में मेरे सामने इधर कुआँ और उधर खाई है।
इन तिलों में तेल
नहीं निकलता= कंजूसों से कुछ प्राप्त नहीं हो सकता।
प्रयोग- तुम यहाँ व्यर्थ ही आए हो मित्र! ये तुम्हें
कुछ नहीं देंगे- इन तिलों में से तेल नहीं निकलेगा।
ईश्वर की माया
कहीं धूप कहीं छाया= (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)
प्रयोग- कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और
कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
ईंट की लेनी, पत्थर की देनी= (बदला चुकाना)
प्रयोग- अशोक ईंट की लेनी, पत्थर की देनी वाले स्वभाव का आदमी है।
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया= (संसार में सभी एक जैसे नहीं हैं- कोई अमीर है, कोई गरीब)
प्रयोग- अमीर-गरीब हर जगह होते हैं। सब ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया है।
इस हाथ दे, उस हाथ ले= (लेने का देना)
प्रयोग- प्रिंसीपल ने मेरे पिता जी से कहा, 'आप मेरे भाई को अपने ऑफिस में, नौकरी पर रख लीजिए; मैं आपके बेटे को अपने स्कूल में एडमीशन दे
दूँगा।' इसे कहते हैं इस हाथ दे, उस हाथ ले।
( उ
)
उल्टा चोर कोतवाल
को डाँटे= (अपराधी निरपराध को डाँटेे)
प्रयोग- एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा
में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर
कोतवाल को डाँटे।
उतर गई लोई तो
क्या करेगा कोई= (इज्जत जाने पर डर किसका?)
प्रयोग- जब लोगों ने उसे बिरादरी से ख़ारिज कर दिया है
अब वह खुलेआम आवारागर्दी कर रहा है- 'उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई'।
उल्टे बांस बरेली
को= (जहाँ जिस वस्तु की आवश्यकता न हो, उसे वहां ले जाना)
प्रयोग- जब राजू अनाज शहर से गाँव ले जाने लगा तो उसके
पिताजी ने कहा कि ये तो उल्टे बांस बरेली वाली बात है। यहाँ क्या अनाज की कोई कमी
है।
उसी का जूता उसी
का सिर= (किसी को उसी की युक्ति या चाल से बेवकूफ बनाना)
प्रयोग- जब चोर पुलिस की बेल्ट से पुलिस को ही मारने
लगा तो सबने यही कहा कि ये तो उसी का जूता उसी का सिर वाली बात हो गई।
उद्योगिन्न
पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी= (उद्योगी को ही धन मिलता है।)
( ऊ
)
ऊँची दुकान फीके
पकवान= (जिसका नाम अधिक हो, पर गुण कम हो)
प्रयोग- उस कंपनी का नाम ही नाम है, गुण तो कुछ भी नहीं है। बस 'ऊँची दुकान फीके पकवान' है।
ऊँट के मुँह में
जीरा= (जरूरत के अनुसार चीज न होना)
प्रयोग- विद्यालय के ट्रिप में जाने के लिए 2,500 रुपये चाहिए थे, परंतु पिता जी ने 1,000
रुपये ही दिए। यह
तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।
ऊधो का लेना न
माधो का देना= (केवल अपने काम से काम रखना)
प्रयोग- प्रोफेसर साहब तो बस अध्ययन और अध्यापन में लगे
रहते हैं। गुटबन्दी से उन्हें कोई लेना-देना नहीं- ऊधो का लेना न माधो का देना।
ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी= (बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा)
ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा= (सभी एक समान)
ऊँट किस करवट
बैठता है= (किसकी जीत होती है।)
ऊँट बहे और गदहा
पूछे कितना पानी= (जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना)
( ए
)
एक पन्थ दो काज= (एक काम से दूसरा काम हो जाना)
प्रयोग- दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे।
कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी
देखेंगे।
एक हाथ से ताली
नहीं बजती= (झगड़ा एक ओर से नहीं होता।)
प्रयोग- आपसी लड़ाई में राम और श्याम-दोनों स्वयं को
निर्दोष बता रहे थे, परंतु यह सही नहीं हो सकता, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती।
एक तो करेला दूजे
नीम चढ़ा= (कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य बुरी संगत में पड़ कर
और बिगड़ जाते है।)
प्रयोग- कालू तो पहले से ही बिगड़ा हुआ था अब उसने आवारा
लोगों का साथ और कर लिया है- एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा।
एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी= (गलत काम करके आँख दिखाना)
प्रयोग- एक तो उसने मेरी किताब चुरा ली, ऊपर से आँखें दिखा रहा है। इसी को कहते हैं- 'एक तो चोरी, दूसरे सीनाज़ोरी।'
एक अनार सौ बीमार= (जिस चीज के बहुत चाहने वाले हों)
प्रयोग- अभिषेक जहाँ कम्प्यूटर सीखता है वहाँ कम्प्यूटर
एक है और सीखने वाले बीस हैं- ये तो वही बात हुई कि एक अनार सौ बीमार।
एक मछली सारे
तालाब को गंदा कर देती है= (एक खराब चीज सारी चीजों को खराब कर देती है।)
प्रयोग- मेरी कक्षा में नानक नामक एक छात्र था जो
छात्रों की किताबें चुरा लेता था। इससे पूरी कक्षा बदनाम हो गई। कहते भी हैं- 'एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।'
एक म्यान में दो
तलवारें नहीं रह सकतीं= (एक वस्तु के दो समान अधिकारी नहीं हो सकते)
प्रयोग- किशनलाल ने दो शादियाँ की थी। दोनों पत्नियाँ
में रोज झगड़ा होता था। तंग आकर किशनलाल एक दिन घर छोड़कर चला गया। बेचारा क्या करता
एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती, यह बात उसे कौन बताता?
एक अकेला, दो ग्यारह= (संगठन में शक्ति होती है)
प्रयोग- पिताजी ने दोनों बेटों को समझाते हुए कहा, यदि तुम दोनों मिलकर व्यापार करोगे तो दिन-दूनी
रात चौगुनी उन्नति होगी। हमेशा याद रखना, 'एक अकेला, और दो ग्यारह' होते हैं।
एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत= (स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है)
प्रयोग- आप सभी को रोज प्राणायाम करना चाहिए, प्राणायाम करते रहोगे तो सेहत अच्छी रहेगी।
सेहत अच्छी होगी तो जीवन में कुछ भी कर सकोगे, एक तंदुरुस्ती, हजार नियामत।
एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय= (किसी कार्य को संपन्न कराने के लिए किसी एक
समर्थ व्यक्ति का सहारा लेना अच्छा है बजाए अनेक लोगों के पीछे भागने के)
प्रयोग- अगर प्रमोशन चाहिए तो मंत्रीजी को पकड़ लो, इन अधिकारियों के पीछे भागने से कोई लाभ नहीं।
किसी ने ठीक कहा है एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय'।
एक ही थैली के
चट्टे-बट्टे= (एक ही प्रवृत्ति के लोग)
प्रयोग- अरे भाई, रोहन और मोहन पर विश्वास मत करना। दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। समझ
लो एक नागनाथ है, तो दूसरा साँपनाथ।
( ऐ
)
ऐरा-गैरा नत्थू
खैरा= (मामूली आदमी)
प्रयोग- कोई 'ऐरा-गैरा नत्थू खैरा' महेश के ऑंफिस के अन्दर नहीं जा सकता।
ऐरे गैरे पंच
कल्याण= (ऐसे लोग जिनके कहीं कोई इज्जत न हो)
प्रयोग- पंचों की सभा में ऐरे गैरे पंच कल्याण का क्या
काम!
'ऐसो को प्रकट्यो जगमाँही, प्रभुता पाय जाहि मदनाहीं'= (जिसके पास धन-संपत्ति होती है, वह अहंकारी होता है)
प्रयोग- रमाकांत की जबसे एक करोड़ की लॉटरी लगी है, धन के नशे में किसी को कुछ समझता ही नहीं। ऐसे
लोगों के लिए ही तुलसीदास ने कहा है- 'ऐसो को प्रकट्यो जगमाँही, प्रभुता पाय जाहि मदनाहीं।'
( ओ
)
ओखली में सिर दिया
तो मूसलों से क्या डर= (कष्ट सहने के लिए तैयार व्यक्ति को कष्ट का डर नहीं रहता।)
प्रयोग- बेचारी शांति देवी ने जब ओखली में सिर दे ही
दिया है तब मूसलों से डरकर भी क्या कर लेगी!
ओस चाटने से प्यास
नहीं बुझती= (किसी को इतनी कम चीज मिलना कि उससे उसकी तृप्ति
न हो।)
प्रयोग- किसी के देने से कब तक गुजर होगी, तुम्हें यह जानना चाहिए कि 'ओस चाटने से प्यास नहीं बुझती'।
ओछे की प्रीति, बालू की भीति= (दुष्ट का प्रेम अस्थिर होता है)
प्रयोग- भई शंकर! दयाराम जैसे घटिया आदमी से अब भी
तुम्हारी पटती है?' शंकर बोला, 'नहीं चाचाजी! मैंने उसका साथ छोड़ दिया। अब मैं समझ चुका हूँ कि ओछे की प्रीति, बालू की भीति के समान होती है'।
( क
)
कहाँ राजा भोज
कहाँ गाँगू तेली= (उच्च और साधारण की तुलना कैसी)
प्रयोग- तुम सेठ करोड़ीमल के बेटे हो। मैं एक मजदूर का
बेटा। तुम्हारा और मेरा मेल कैसा ? कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।
कंगाली में आटा
गीला= (परेशानी पर परेशानी आना)
प्रयोग- पिता जी की बीमारी की वजह से घर में वैसे ही
आर्थिक तंगी चल रही है, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ गया। इसे
कहते हैं- कंगाली में आटा गीला।
कोयले की दलाली
में मुँह काला= (बुरों के साथ बुराई ही मिलती है)
प्रयोग- तुम्हें हजार बार समझाया चोरी मत करो, एक दिन पकड़े जाओगे। अब भुगतो। कोयले की दलाली
में हमेशा मुँह काला ही होता है।
कहीं की ईट कहीं
का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा= (बेमेल वस्तुओं को एक जगह एकत्र करना)
प्रयोग- शर्मा जी ने ऐसी किताब लिखी है कि किताब में
कहीं कुछ मेल नहीं खाता। उन्होंने तो वही हाल किया है- 'कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा'।
काला अक्षर भैंस
बराबर= (बिल्कुल अनपढ़ व्यक्ति)
प्रयोग- कालू तो अख़बार भी नहीं पढ़ सकता, वह तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना= (जो मिल जाए उसी में संतुष्ट रहना)
प्रयोग- वह सच्चा साधु है; जो कुछ पाता है वही खाकर संतुष्ट हो जाता है-
कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना।
करे कोई, भरे कोई= (अपराध कोई करे, दण्ड किसी और को मिले)
प्रयोग- चोरी रामू ने की और पकड़ा गया राजू। इसी को कहते
हैं- 'करे कोई, भरे कोई'।
कागा चले हंस की
चाल= (गुणहीन व्यक्ति का गुणवान व्यक्ति की भांति
व्यवहार करना)
प्रयोग- राजू गँवार है, परन्तु जब सूटबूट पहन कर निकलता है तो जैंटलमैन लगता है। इसी को कहते हैं- 'कागा चले हंस की चाल'।
काम को काम सिखाता
है= (कोई भी काम करने से ही आता है।)
प्रयोग- मित्र, तुम क्यों चिन्ता करते हो- सब सीख जाओगे। कहावत भी मशहूर है- 'काम को काम सिखाता है'कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय
कुत्ता भी अपनी
गली में शेर होता है= (अपने घर में निर्बल भी बलवान या बहादुर होता है।)
प्रयोग- जब रवि ने कालू को अपनी गली में मारा तो उसने
कहा कि कुत्ता भी अपनी गली में शेर होता है, तू मेरे मोहल्ले में आना।
कुत्तों के भौंकने
से हाथी नहीं डरते= (विद्वान लोग मूर्खों और ओछों की बातों की परवाह
नहीं करते)
प्रयोग- लोगों ने गाँधीजी की कटु आलोचनाएँ कीं, पर वे अपने सिद्धांत पर अटल रहे, डरे नहीं। कहावत भी है- ' कुत्तों के भौंकने से हाथी नहीं डरते'।
कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय= (प्रतिष्ठित और विद्वान व्यक्ति अपने अनुकूल
प्रतिष्ठा के साथ ही जाना ठीक समझता है।)
प्रयोग- रवि ने माता-पिता से कहा कि वह एम.ए. करके
चपरासी की नौकरी नहीं करेगा- 'कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय'।
कोयले की दलाली
में हाथ काले= (बुरी संगत का बुरा असर)
प्रयोग- कालू बुरी संगत में पड़ गया है, सब कहते हैं कि यह बुरी संगत छोड़ दे, क्योंकि कोयले की दलाली में हाथ काले हो ही
जाते हैं।
कबहुँ निरामिष होय
न कागा= (दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता)
प्रयोग- रमन ने कहा था कि यह इंजीनियर उसका जानने वाला
है अतः बिना कुछ लिए दिए नक्शा पास कर देगा पर वह तो पचास हजार माँग रहा है। मुझे
तो अब इस कहावत पर विश्वास हो गया है कि 'कबहुँ निरामिष होय न कागा'।
काठ की हाँड़ी
बार-बार नहीं चढ़ती= (चालाकी से एक ही बार काम निकलता है)
प्रयोग- एक बार तो मुझसे झूठ बोल कर कर्जा ले गए लेकिन
हर बार तुम मुझे मुर्ख नहीं बना सकते। ध्यान रखो, 'काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती'।
का वर्षा जब कृषि
सुखाने= (समय निकल जाने पर मदद करना व्यर्थ है)
प्रयोग- मुझे रुपयों की जरूरत तो परसों थी और तुम देने
आए हो आज। अब मैं इनका क्या करूँगा, अब तो प्लॉंट बुक नहीं कर सकता। अंतिम तिथि निकल गई। किसी ने सच ही कहा है कि 'का वर्षा जब कृषि सुखाने'।
कहे से धोबी गधे
पर नहीं चढ़ता=(मूर्ख पर समझाने का असर नहीं होता)
प्रयोग- पूरे दिन सुशील बाँसुरी बजाता रहता है लेकिन
यदि उससे कभी कोई फरमाइश करे तो नखरे करता है। किसी ने सच कहा है कि 'कहे से धोबी गधे पर नहीं चढ़ता'।
काम का न काज का, दुश्मन अनाज का= (किसी मतलब का न होना)
प्रयोग- सूरजभान कोई काम-वाम तो करता नहीं, बड़े भाई के यहाँ पड़े-पड़े टाइम पास कर रहा है।
ऐसे लोग तो 'काम का न काज का, दुश्मन अनाज के' होते है।
कौड़ी न हो पास तो
मेला लगे उदास= (धन के अभाव में जीवन में कोई आकर्षण नहीं)
प्रयोग- करीम मियाँ की जबसे नौकरी छूटी है, हमेशा जेब खाली रहती है। इसलिए वे कहीं
आते-जाते तक नहीं। कहीं भी उनका मन नहीं लगता। किसी ने सच कहा है, 'कौड़ी न हो पास तो मेला लगे उदास'।
कबीरदास की उलटी
बानी, बरसे कंबल भींगे पानी= (प्रकृतीविरुद्ध काम)
कहे खेत की, सुने खलिहान की= (हुक्म कुछ और करना कुछ और)
काबुल में क्या
गदहे नहीं होते= (अच्छे बुरे सभी जगह हैं।)
किसी का घर जले, कोई तापे= (दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना)
( ख
)
खोदा पहाड़ निकली
चुहिया= (बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ)
प्रयोग- बच्चा बेचारा दिन भर लाल बत्ती पर अख़बार बेचता
रहा, परंतु उसे कमाई मात्र बीस रुपये की हुई। यह वही
बात है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
खिसियानी बिल्ली
खंभा नोचे= (किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना)
प्रयोग- दस लोगों के सामने जब मोहन की बात किसी ने नहीं
सुनी, तो उसकी हालत उसी तरह हो गई ; जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
खरबूजे को देखकर
खरबूजा रंग पकड़ता है= एक को देखकर दूसरा बालक या व्यक्ति भी बिगड़
जाता है।
प्रयोग- रोहन अन्य बालकों को देखकर बिगड़ गया है। सच ही
है- 'खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है'।
खरी मजूरी चोखा
काम= (मजदूरी के तुरन्त बाद नकद पैसे मिलना)
प्रयोग- रवि ने मालिक से कहा कि उसे अपनी मजदूरी के
पैसे तुरन्त चाहिए- 'खरी मजूरी चोखा काम'।
खाली दिमाग शैतान
का घर= (बेकार बैठने से तरह-तरह की खुराफातें सूझती
हैं।)
प्रयोग- राजू बोला कि मैं कभी खाली नहीं रहता हूँ, क्योंकि 'खाली दिमाग शैतान का घर' होता है।
खुदा गंजे को
नाख़ून न दे= (नाकाबिल को कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए)
प्रयोग- अशोक ने कहा कि यदि मैं तहसीलदार बन जाऊँ तो
तुम्हारा चबूतरा खुदवा डालूँगा। उसके पड़ोसी ने कहा कि 'खुदा गंजे को नाख़ून न दे'।
खुशामद से ही आमद
होती है= (बड़े आदमियों (धनी या बड़े पद वालों) की खुशामद
करने से धन, यश और पद प्राप्त होता है।)
प्रयोग- मित्र, आजकल खुशामद करना सीखना होगा, क्योंकि 'खुशामद से ही आमद होती है।'
खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी= (एक ही प्रकार के दो मनुष्यों का साथ)
प्रयोग- महेश और नरेश दोनों घनिष्ठ मित्र हैं और दोनों
ही अपाहिज हैं। उन्हें देख कर गोपाल ने कहा- 'खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी'।
खरा खेल
फर्रुखावादी= (स्पष्टवक्ता सदा सुखी होता है)
प्रयोग- भैया, अपना तो खरा खेल फर्रुखावादी है। जो कुछ कहना होता है मुँह पर कह देता हूँ, कोई भला माने या बुरा। कम-से-कम मुझे तो अपराध
बोध नहीं होता कि मैंने सच को छुपाया।
खग जाने खग ही की
भाषा=(साथी की बात साथी समझ लेता है)
प्रयोग- मैं जब भी परेशान होता हूँ मेरा दोस्त विकास
पता नहीं कैसे समझ लेता है। सच बात है कि 'खग जाने खग ही की भाषा'।
खून सिर चढ़कर
बोलता हैै= (पाप स्वतः सामने आ जाता है)
प्रयोग- तुम चिंता मत करो। रामेश्वर धूर्त और मक्कार है
और उसकी मक्कारी और धूर्तता, उसके कामों से सब लोगों के सामने आ जाएगी। कब तक इसकी काली करतूतें छुपेंगी।
एक-न-एक दिन तो 'खून सिर पर चढ़कर बोलेगा'।
खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा= (अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को)
( ग
)
गागर में सागर
भरना= (कम शब्दों में बहुत कुछ कहना)
प्रयोग- बिहारी कवि ने अपने दोहों में गागर में सागर भर
दिया है।
गया वक्त फिर हाथ
नहीं आता= (जो समय बीत जाता है, वह वापस नहीं आता)
प्रयोग- अध्यापक ने बताया कि हमें अपना समय व्यर्थ नहीं
खोना चाहिए, क्योंकि गया वक्त फिर हाथ नहीं आता।
गरज पड़ने पर गधे
को भी बाप कहना पड़ता है= (मुसीबत में हमें छोटे-छोटे लोगों की भी खुशामद करनी पड़ती है।)
प्रयोग- मनीष के पास टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे
तो उसने एक चपरासी से अनुनय-विनय करके पैसे इकट्ठे किए। कहावत भी है कि 'गरज पड़ने पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है'।
गरजने वाले बादल
बरसते नहीं हैं= (जो बहुत बढ़-बढ़ कर बातें करते हैं, वे काम कम करते हैं।)
प्रयोग- बड़बोले रवि से श्याम ने कहा कि गरजने वाले बादल
बरसते नहीं हैं।
गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त= (जिसका काम हो वह परवाह न करे, बल्कि दूसरा आदमी तत्परता दिखाए)
प्रयोग- लालू को अपनी लड़की को स्कूल में दाखिला दिलाना
था, पर जब वह नहीं चलेंगे तो कोई क्या करेगा; ये तो वही हुआ- गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त।
गीदड़ की शामत आए
तो वह शहर की तरफ भागता है= (जब विपत्ति आती है तब मनुष्य की बुद्धि विपरीत हो जाती है।)
प्रयोग- एक तो गौरव की कंपनी के मैनेजर ने मजदूरों को
रविवार की छुट्टी नहीं दी; इसके अलावा उनकी मजदूरी भी काटनी शुरू कर दी।
फलतः हड़ताल हो गई और मैनेजर को इस्तीफा देना पड़ा। सच ही कहा है- 'गीदड़ की शामत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है'।
गुरु गुड़ ही रहा, चेला शक़्कर हो गया= (शिष्य का गुरु से अधिक उन्नति करना)
प्रयोग- उसने मुझसे अंग्रेजी पढ़ना सीखा और आज वह मुझसे
अच्छी अंग्रेजी बोलता है, यह तो वही मिसाल हुई- 'गुरु गुड़ ही रहा और चेला शक़्कर हो गया'।
गेहूँ के साथ घुन
भी पिसता है= (अपराधियों के साथ निर्दोष व्यक्ति भी दण्ड पाते
हैं।)
प्रयोग- मैंने कालू से कहा था कि चोर-डाकुओं के साथ मत
रहो। लेकिन उसने मेरी एक न सुनी। इसी कारण आज जेल काट रहा है। कहावत भी है- 'गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है'।
गुड़ खाए गुलगुलों
से परहेज= (कोई बड़ी बुराई करना और छोटी से बचना)
प्रयोग- वैसे तो रमानाथ चोरी, डाका सब डाल लेता है पर कल जब मैंने कहा कि
मेरे साथ अदालत चलकर मेरे हक में गवाही दे दो तो कहने लगा कि मैं झूठी गवाही नहीं
देता। वाह गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज।
गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमनादास= (सिद्धांतहीन मनुष्य, अवसरवादी)
प्रयोग- आजकल के नेताओं का क्या भरोसा, सभी अवसरवादी हैं। जिस पार्टी की सरकार बनती है
उसी में शामिल हो जाते हैं। इनके लिए यह कहावत उपयुक्त है कि गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमनादास।
गरीब की जोरू, सबकी भाभी= (कमजोर पर सब अधिकार जताते हैं)
प्रयोग- सारे परिवार में सुबोध ही कम पैसेवाला है, इसलिए परिवार के सारे सदस्य उसी पर हुक्म चलाते
हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि गरीब की जोरू, सबकी भाभी होती है।
गुड़ न दे तो गुड़
की सी बात तो कहे= (भले ही किसी को कुछ न दें पर मधुर व्यवहार
करें)
प्रयोग- अरे भैया आप उस बेचारे की मदद नहीं करना चाहते
तो मत करो पर उसे डाँटो-फटकारो तो मत। उससे बात तो ठीक से करो। यदि किसी को गुड़ न
दो तो गुड़ की सी बात तो कहो।
गाँव का जोगी
जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं)
गोद में छोरा नगर
में ढिंढोरा= (पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना)
गाछे कटहल, ओठे तेल= (काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा)
गुड़ गुड़, चेला चीनी= (गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना)
( घ
)
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (जो मनुष्य बहुत निकटस्थ या परिचित होता है उसकी
योग्यता को न देखकर बाहर वाले की योग्यता देखना)
प्रयोग- यहाँ स्वामी विवेकानंद को लोग इतना नहीं मानते
जितना अमेरिका में मानते हैं। सच ही है- 'घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध'।
घर की मुर्गी दाल
बराबर= (घर की वस्तु या व्यक्ति को कोई महत्व न देना)
प्रयोग- पं. दीनदयाल हमारे गाँव के बड़े प्रकांड पंडित
हैं। बाहर उनका बड़ा सम्मान होता है, परन्तु गाँव के लोग उनका जरा भी आदर नहीं करते। लोकोक्ति प्रसिद्ध है- 'घर की मुर्गी दाल बराबर'।
घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने= (झूठा दिखावा करना)
प्रयोग- रामू निर्धन है फिर भी ऐसा बन-ठन कर निकलता है
जैसे लखपति हो। ऐसे ही लोगों के लिए कहते हैं- 'घर में नहीं दाने, बुढ़िया चली भुनाने'।
घोड़ा घास से यारी
करेगा तो खायेगा क्या= (मेहनताना या पारिश्रमिक माँगने में संकोच नहीं
करना चाहिए।)
प्रयोग- भाई, मैंने दो महीने काम किया है। संकोच में तनख्वाह न माँगू तो क्या करूँ- 'घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या'?
घर का भेदी लंका
ढाए= (आपस की फूट से हानि होती है।)
प्रयोग- तस्करी के सोने पर तीनों दोस्तों में झगड़ा हो
गया। एक ने पुलिस को खबर दे दी और पुलिस सारे सोने समेत तीनों को पकड़ कर ले गई। सच
है, घर का भेदी लंका ढाए।
घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा= (हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना)
घर पर फूस नहीं, नाम धनपत= (गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना)
घर में दिया जलाकर
मसजिद में जलाना= (दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना)
घी का लड्डू टेढ़ा
भला = (लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो।)
( च
)
चिराग तले अँधेरा= (अपनी बुराई नहीं दीखती)
प्रयोग- मेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज न लेने
का उपदेश देते फिरते है; पर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने
हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि 'चिराग तले अँधेरा।'
चार दिन की चाँदनी
फिर अँधेरी रात= (सुख के कुछ दिनों के बाद दुख का आना)
प्रयोग- आज पैसा आने पर ज्यादा मत उछलो, क्या पता कब कैसे दिन देखने पड़ें ? सही बात है- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
चोर की दाढ़ी में
तिनका= (अपने आप से डरना)
प्रयोग- विद्यालय से गायब होने पर पिता जी को बुलाने की
बात सुनते ही कमल का चेहरा फीका पड़ गया। उसकी स्थिति चोर की दाढ़ी में तिनके के
समान हो गई।
चोर पर मोर= (एक दूसरे से ज्यादा धूर्त)
प्रयोग-मृदुल और करन दोनों को कम मत समझो। ये दोनों ही
चोर पर मोर हैं।
चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय= (अत्यधिक कंजूसी करना)
प्रयोग- जेबकतरे ने सौ रुपए उड़ा लिए तो कुछ नहीं, पर मुन्ना ने मुझे पाँच रुपए उधार नहीं दिए। ये
तो वही बात हुई कि चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय।
चिकने घड़े पर पानी
नहीं ठरहता= (बेशर्म आदमी पर किसी बात का कोई असर नहीं होता)
प्रयोग- रामू बहुत निर्लज्ज आदमी है। मैंने उसे बहुत
समझाया, परन्तु उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कहावत भी है
कि 'चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता'।
चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का= (हर तरह से लाभ चाहना)
प्रयोग- दादाजी के साथ सबसे बड़ी मुसीबत यही है कि वे
हरदम अपनी बात ही बड़ी रखते हैं। ये तो वही बात हुई- चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का।
चील के घोंसले में
मांस कहाँ= (किसी व्यक्ति से ऐसी वस्तु की प्राप्त करने की
आशा करना, जो उसके पास न हो।)
प्रयोग- मैंने सोचा था कि राजू के घर लड्डू खाने को
मिलेंगे, पर चील के घोंसले में मांस कहाँ से मिलता।
चोर के पैर नहीं
होते= (चोर चोरी करते वक्त जरा-सी आहट से डरकर भाग
जाता है।)
प्रयोग- जब चोरों ने देखा कि घरवाले जाग गए हैं, तब वे बिना कुछ चुराए ही उसके घर से भाग गए, क्योंकि 'चोर के पैर नहीं होते'।
चोर-चोर मौसेरे
भाई= (एक व्यवसाय या स्वभाव वालों में जल्दी मेल हो
जाता है।)
प्रयोग- राजनीति में कुछ असामाजिक तत्वों के कारण अपराध
और राजनीति दोनों चोर-चोर मौसेरे भाई लगते हैं।
चोरी चोरी से जाय, पर हेरा-फेरी से न जाय= (किसी की प्रकृति में पूर्ण परिवर्तन न होना)
प्रयोग- रामू ने चोरी करना तो छोड़ दिया हैं, पर अब वह कभी- कभी हेरा-फेरी तो कर ही लेता है, ये कहावत ठीक ही है कि चोरी चोरी से जाय, पर हेरा-फेरी से न जाय।
चोरी और सीना
जोरी= (अपराध करके अकड़ना)
प्रयोग- रवि एक तो स्कूल देर से पहुँचा, ऊपर से बहस भी करने लगा; यह चोरी और सीना जोरी करने पर अध्यापक ने उसे
हाथ ऊपर करके खड़े होने की सजा दी।
चलती का नाम गाड़ी= (हस्ती समाप्त होने के बाद भी धाक जमी रहना)
प्रयोग- हमारे देश में एक से एक गाड़ियाँ बन रही हैं, फिर भी लोगों को विदेशी गाड़ियाँ खरीदने की लगी
रहती है। क्या कहा जाए चलती का नाम गाड़ी है।
चाँद पर थूका, मुँह पर गिरा= (सज्जन की बुराई करने से अपनी ही बेइज्जती होती
है)
प्रयोग- भले लोगों की बुराई करोगे तो तुम खुद ही बदनाम
होगे। जो चाँद पर थूकता है, थूक उसी के मुँह पर गिरता है।
चूहे घर में दण्ड
पेलते हैं= (आभाव-ही-आभाव)
( छ
)
छछूंदर के सिर में
चमेली का तेल= (किसी व्यक्ति के पास ऐसी वस्तु हो जो कि उसके
योग्य न हो।)
प्रयोग- रामू मिडिल पास है फिर भी उसकी सरकारी नौकरी लग
गई, इसी को कहते हैं- 'छछूंदर के सिर में चमेली का तेल'।
छोटा बड़ा खोटा= (नाटा आदमी बड़ा तेज-तर्रार होता है।)
प्रयोग- रामू नाटा है इसलिए वह बड़ा काइयाँ हैं, कहते भी हैं- 'छोटा बड़ा खोटा'।
छोटा मुँह बड़ी
बात= (कम उम्र या अनुभव वाले मनुष्य का लम्बी-चौड़ी
बातें करना)
प्रयोग- किशन तो हमेशा छोटा मुँह बड़ी बात करता है।
छोटे मियां तो
छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह= (जब बड़ा छोटे से अधिक शैतान हो)
प्रयोग- राजू का छोटा भाई तो गाली देकर चुप हो गया, लेकिन राजू तो लड़ने को तैयार हो गया। उसे देखकर
मुझे यही कहना पड़ा- 'छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह'।
( ज
)
जिन ढूँढ़ा तिन
पाइयाँ गहरे पानी पैठ= (परिश्रम का फल अवश्य मिलता है)
प्रयोग- एक लड़का, जो बड़ा आलसी था, बार-बार फेल करता था और दूसरा, जो परिश्रमी था, पहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाई, तुम कैसे एक ही बार में पास कर गये, तब उसने जवाब दिया कि 'जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ'।
जैसी करनी वैसी
भरनी= (कर्म के अनुसार फल मिलता है)
प्रयोग- राधा ने समय पर प्रोजेक्ट नहीं दिखाया और उसे
उसमें शून्य अंक प्राप्त हुए। ठीक ही हुआ- जैसी करनी वैसी भरनी।
जिसकी लाठी उसकी
भैंस= (बलवान की ही जीत होती है)
प्रयोग- सरपंच ने जिसे चाहा उसे बीज दिया। बेचारे किसान
कुछ न कर पाए। इसे कहते हैं- जिसकी लाठी उसकी भैंस।
जंगल में मोर नाचा, किसने देखा= (ऐसे स्थान में कोई अपना गुण दिखाए जहाँ कोई देखने वाला न हो।)
प्रयोग- रवि ने रामू से कहा कि आप चलकर शहर में रहिए, यहाँ गाँव में आपकी विद्या की कोई कद्र नहीं- 'जंगल में मोर नाचा, किसने देखा'।
जब ओखली में सिर
दिया तो मूसलों से क्या डरना= (जब कोई कष्ट सहने के लिए तैयार हो तो डर कैसा)
प्रयोग- जब रमेश ने नई दुकान खोल ही ली है तो अब कष्ट
तो झेलने ही होंगे, कहावत भी है- 'जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना'।
जब चने थे तब दांत
न थे, जब दांत हुए तब चने नहीं= (जब धन था तब बच्चे न थे, जब बच्चे हुए तब धन नहीं है।)
प्रयोग- रामू काका कहते हैं कि हम पहले बड़े अमीर थे, पर उस समय खाने वाला कोई नहीं था और अब खाने
वाले हुए तब धन नहीं है। ये तो वही बात हुई- 'जब चने थे तब दांत न थे, जब दांत हुए तब चने नहीं'।
जब तक जीना, तब तक सीना= (जब तक मनुष्य जीवित है तब तक उसे कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ता है।)
प्रयोग- मेरी माँ हमेशा कहती हैं कि वे जब तक जिंदा हैं
तब तक काम करेंगी। उनका तो यही सिद्धांत है- 'जब तक जीना, तब तक सीना'।
जब तक सांस तब तक
आस= (जब तक मनुष्य जीवित है तब तक आशा बनी रहती है।)
प्रयोग- रामू काका ने अपने जीवन में आखिरी दम तक हिम्मत
नहीं हारी; कहावत भी है- ' जब तक सांस तब तक आस'।
जर, जोरू, जमीन जोर की, नहीं तो और की= (धन, स्त्री और जमीन बलवान अपने बल से प्राप्त कर सकता है, निर्बल व्यक्ति नहीं)
प्रयोग- राजू काका सच कहते हैं- 'जर, जोरू, जमीन जोर की, नहीं तो और की'
जल्दी का काम
शैतान का, देर का काम रहमान का= (जल्दी करने से काम बिगड़ जाता है और शांति से
काम ठीक होता है।)
प्रयोग- तुम मुझसे हर काम को जल्दी करने को कहते हो।
जानते नहीं हो- 'जल्दी का काम शैतान का, देर का काम रहमान का' होता हैं।
जहाँ का पीवे पानी, वहाँ की बोले बानी= (जिस व्यक्ति का खाए, उसी की-सी बातें करनी चाहिए)
प्रयोग- मैं उनका नमक खाता हूँ, तो उनकी जैसी कहूँगा। मनुष्य को चाहिए- ' जहाँ का पीवे पानी, वहाँ की बोले बानी'।
जहाँ चाह, वहाँ राह= (जब किसी काम को करने की व्यक्ति की इच्छा होती है तो उसे उसका साधन भी मिल ही
जाता है।)
प्रयोग- रामेश्वर फ़िल्म बनाना चाहता था तो उसे
प्रोड्यूसर और डायरेक्टर मिल ही गए; कहते भी हैं- 'जहाँ चाह, वहाँ राह'।
जहाँ जाए भूखा, वहाँ पड़े सूखा= (अभागे मनुष्य को हर जगह दुःख ही दुःख मिलता
है।)
प्रयोग- बेचारा गरीब राजू दावत में तब पहुँचा, जब भोज समाप्त हो गया। इसी को कहते हैं- 'जहाँ जाए भूखा, वहाँ पड़े सूखा'।
जाका कोड़ा, ताका घोड़ा= (जिसके पास शक्ति होती है, उसी की जीत होती है।)
प्रयोग- मंत्री जी अपने सारे निजी काम सत्ता के बल पर
कराते हैं, कहते भी हैं- 'जाका कोड़ा, ताका घोड़ा'।
जाके पांव न फटी
बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई= (जिस मनुष्य पर कभी दुःख न पड़ा हो, वह दूसरों का दुःख क्या समझे)
प्रयोग- दादी ने मुझसे कहा- बेटा, तुम पुरुष हो। नारी के दुःख को तुम कभी समझ ही
न सकोगे। 'जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई'।
जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा= (जो हर क्षण सावधान रहता है, उसे ही लाभ होता है।)
प्रयोग- रामू बहुत सतर्क रहता है, इसलिए उसको कभी हानि नहीं होती और तुमको बराबर
हानि ही हानि होती है। कहते भी हैं- 'जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोवेगा'।
जान न पहचान, बड़ी बुआ सलाम= (बिना जान-पहचान के किसी से भी संबंध जोड़कर
बातचीत करना)
प्रयोग- मेरे पास एक आदमी आकर जब जबरदस्ती खुद को मेरा
मित्र बताने लगा तो मैंने उससे कहा- 'जान न पहचान, बड़ी बुआ सलाम'।
जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर= (बनिया परिचित व्यक्ति को ठगता है और चोर भेद
मिलने से चोरी करता है।)
प्रयोग- सेठ जी वैसे तो मेरे मित्र हैं, लेकिन कपड़े के दाम बड़े महंगे लिए। मैं भी
मुलाहिजे में कुछ न कह सका। ये कहावत ठीक ही है- 'जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर'।
जान है तो जहान
है= (संसार में जान सबसे प्यारी वस्तु है।)
प्रयोग- रामू काका ने मुझसे कहा कि ' जान है तो जहान है'। मैं पहले अपना स्वास्थ्य देखूँ, काम बाद में होता रहेगा।
जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा= जितना अधिक रुपया खर्च करेंगे, उतनी ही अच्छी वस्तु मिलेगी)
प्रयोग- विवेक ने कम पैसों के चक्कर में घटिया पंखा ले
लिया, वह चार दिन भी नहीं चला। कहावत भी है- ' जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा'।
जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ= (आदमी को अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार ही
कोई काम करना चाहिए)
प्रयोग- रोहन हमेशा आमदनी से अधिक खर्च करता है और बाद
में पैसे उधार लेता फिरता है। इस पर माँ ने कहा कि आदमी की जितनी चादर हो उतने ही
पैर फैलाने चाहिए।
जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना= (जिस व्यक्ति के आश्रय में रहना, उसी को हानि पहुँचाना)
प्रयोग- शांति जिस थाली में खा रही है, उसी में छेद कर रही है। जिसने उसकी सहायता की, उसी को छल रही है।
जिसका काम उसी को
छाजै, और करे तो डंडा बाजै= (जिसको जिस काम का अभ्यास और अनुभव होता है, वह उसे सरलता से कर लेता है। गैर-अनुभवी आदमी
उसे नहीं कर सकता)
प्रयोग- जब राहुल ने खुद दीवार बनानी शुरू की तो वह गिर
पड़ी। वह नहीं जानता था- 'जिसका काम उसी को छाजै, और करे तो डंडा बाजै'।
जिसकी जूती, उसी का सिर= (किसी व्यक्ति की चीज से उसी को हानि पहुँचाना)
प्रयोग- चोर ने पुलिस की बेंत से ही पुलिस को मारना
शुरू कर दिया, ये तो वही बात हुई- 'जिसकी जूती, उसी का सिर'।
जिसकी बिल्ली, उसी से म्याऊँ= (जब किसी के द्वारा पाला-पोसा हुआ व्यक्ति उसी
को आँखें दिखाए)
प्रयोग- ये क्या पता था कि राजू कभी उन्हीं को आँख
दिखाएगा जिसने उसे पाला है। ये तो वही बात हुई- 'जिसकी बिल्ली, उसी से म्याऊँ'।
जैसा दाम, वैसा काम= (जितनी अच्छी मजदूरी दी जाएगी, उतना ही अच्छा काम होगा)
प्रयोग- जब मालिक ने बढ़ई से कहा कि वह सामान ठीक से
नहीं बना रहा है तो बढ़ई ने उत्तर दिया- बाबू जी, जैसा दाम वैसा काम, आप मुझे भी तो बहुत कम दे रहे है।
जैसा देश, वैसा वेश= (जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों-नीतियों के
अनुसार आचरण करना चाहिए)
प्रयोग- सफलता उसे ही प्राप्त होती है जो समय के साथ
चलता है। कहते भी हैं- ' जैसा देश, वैसा वेश'।
जो करेगा, सो भरेगा= (जो जैसा काम करेगा वैसा फल पाएगा)
प्रयोग- छोड़ो मित्र, जो करेगा, सो भरेगा, तुम्हें क्या?
जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं= (जो लोग बहुत शेखी बघारते हैं, वे बहुत अधिक काम नहीं करते)
प्रयोग- अशोक जब बड़ी-बड़ी डींग हाँकने लगा तो सुनील बोल
पड़ा- 'जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं'।
जल में रहकर
मगरमच्छ से बैर= (जिसके सहारे रहे, उसी से दुश्मनी करना)
प्रयोग- जिस स्कूल में नौकरी करती हो, उसी स्कूल के डायरेक्टर का विरोध करती हो। किसी
भी दिन नौकरी से निकाल देगा। ध्यान रखो। जल में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया
जाता।
जाको राखै साइयाँ, मारि सकै ना कोय= (जिसका रक्षक ईश्वर है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़
सकता)
प्रयोग- कैसा चमत्कार हुआ। बस खड्डे में जा गिरी पर
किसी मुसाफिर को चोट तक न आई। सच है, 'जाको राखै साइयाँ, मारि सकै ना कोय'।
जो किसी को कुआँ
खोदता है, उसको खाई तैयार रहती है= (जैसे को तैसा)
प्रयोग- पंडित रामनाथ बेचारे रामधन को नौकरी से
निकलवाने पर तुले थे क्योंकि ऑफिस इंचार्ज उनका रिश्तेदार था। किस्मत का करिश्मा
देखो, इंचार्ज का ट्रांसफर हो गया और उसकी जगह एक
ईमानदार अफसर आ गया। उसने मामले की जाँच की और रामनाथ को ही दोषी पाया और उसी को
नौकरी से निकाल दिया। इसलिए ध्यान रखो जो किसी और को कुआँ खोदता है, उसको खाई तैयार रहती है।
जान बची तो लाखों
पाये= (जान बचने से बड़ा कोई लाभ नहीं है।)
( झ
)
झट मंगनी पट
ब्याह= (किसी काम का जल्दी से हो जाना)
प्रयोग- अभी तो मोहन ने मकान की नींव डाली थी और अभी
उसे बनवा कर उसमें रहने भी लगा। ये तो उसने 'झट मंगनी पट ब्याह' वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया।
झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला= (अंत में सच्चे आदमी की ही जीत होती है।)
प्रयोग- किसी आदमी को झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि- 'झूठे का मुँह काला, सच्चे का बोलबाला' होता है।
झोपड़ी में रह के
महलों के सपने देखे= (अपनी सीमा से अधिक पाने की इच्छा करना)
प्रयोग- मोहनलाल के बेटे ने थर्ड डिवीजन में बी० ए० पास
किया है और चाहता है कि किसी कंपनी में सीधा मैनेजर बन जाए। भाई! झोपड़ी में रह के, महलों के सपने देखना अक्लमंदी नहीं है।
( ट
)
टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई= (थोड़े ही खर्च में किसी के चरित्र को जान लेना)
प्रयोग- जब रमेश ने पैसे वापस नहीं किए तो सोहन ने सोच
लिया कि अब वह उसे दोबारा उधार नहीं देगा- 'टके की हांडी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई'।
टुकड़े दे दे बछड़ा
पाला, सींग लगे तब मारन चाला= (कृतघ्न व्यक्ति)
प्रयोग- जिसने रामू को पाला आज नौकरी लगने पर वह उन्हें
ही आँख दिखा रहा है। ठीक ही कहा है- 'टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला'।
( ठ
)
ठंडा लोहा गरम
लोहे को काटता है= (शांत प्रकृति वाला मनुष्य क्रोधी मनुष्य को हरा
देता है।)
प्रयोग- जब भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को लात मारी, लेकिन उनके यह कहने पर कि आपके पैर में चोट तो
नहीं लगी, भृगु स्वयं लज्जित हो गए। ठीक ही कहा है- 'ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है'।
ठेस लगे, बुद्धि बढ़े= (हानि मनुष्य को बुद्धिमान बनाती है।)
प्रयोग- राजेश ने व्यापार में बहुत क्षति उठाई है, तब वह सफल हुआ है। ठीक ही कहते हैं- 'ठेस लगे, बुद्धि बढ़े'।
ठठेरे-ठठेरे
बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)
( ड
)
डरा सो मरा= (डरने वाला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता)
प्रयोग- रामू उस जेबकतरे के चाकू से डर गया, वर्ना वह जेबकतरा पकड़ा जाता। कहते भी हैं- 'जो डरा सो मरा'।
डूबते को तिनके का
सहारा= (विपत्ति में पड़े हुए मनुष्य को थोड़ा सहारा भी
काफी होता है।)
प्रयोग- संकट के समय रमेश को इस बात से आशा की किरण
दिखाई दी कि 'डूबते को तिनके का सहारा'।
डेढ़ पाव आटा पुल
पर रसोई= (थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना)
प्रयोग- मुन्ना के पास केवल पचास आदमियों के खिलाने की
सामर्थ्य थी तब उसने यह सब व्यर्थ का आडम्बर क्यों रचा? यह तो वही हाल हुआ- 'डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई'।
( ढ
)
ढाक के वही तीन
पात= (परिणाम कुछ नहीं निकलना, बात वहीं की वहीं रहना)
प्रयोग- अध्यापक ने रामू को इतना समझाया कि वह सिगरेट
पीना छोड़ दे, पर परिणाम 'ढाक के वही तीन पात', और एक दिन रामू के मुँह में कैंसर हो गया।
( त
)
तुम डाल-डाल तो
मैं पात-पात= (किसी की चालों को खूब समझना)
प्रयोग- रंजीत ने कहा कि चलो, किधर चलते हो; 'तुम डाल-डाल तो मैं पात-पात'।
तेल तिलों से ही
निकलता है= (यदि कोई आदमी किसी मामले में कुछ खर्च करता है
तो वह फायदा उस मामले से ही निकाल लेता है।)
प्रयोग- जब नौकर ने कमीशन माँगा तो दुकानदार ने कीमत
सवाई कर दी। आखिर, भाई, 'तेल तिलों से ही निकलता है'।
तेल देखो, तेल की धार देखो= (किसी कार्य का परिणाम देखने की बात करना)
प्रयोग- रामू बोला- 'तेल देखो, तेल की धार देखो', घबराते क्यों हो?
तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले= (जब एक व्यक्ति कुछ खर्च कर रहा हो और दूसरा उसे
देख कर ईर्ष्या करे)
प्रयोग- मालिक कर्मचारियों को जब कुछ देना चाहता है तो
मैनेजर को बहुत ईर्ष्या होती है। ये तो वही बात हुई- 'तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले'।
ताली एक हाथ से
नहीं बजाई जाती= (प्रेम या लड़ाई एकतरफा नहीं होती)
प्रयोग- अध्यापक तो पढ़ाना चाहते हैं, पर छात्र ही न पढ़े तो वे क्या करें, कहते भी हैं- ' ताली एक हाथ से नहीं बजाई जाती'।
तीन में न तेरह
में= (जिसकी पूछ न हो)
प्रयोग- रामू वहाँ किस हैसियत से जाएगा। वहाँ उसकी कोई
नहीं सुनेगा, क्योंकि वह 'तीन में न तेरह में'।
तबेले की बला बंदर
के सिर = (दोष किसी का, सजा किसी और को)
प्रयोग- चोरी तो की थी सुरेंद्र ने और झूठी शिकायत के
आधार पर अध्यापक ने सजा दी महेश को। क्या कहें, यह तो वही बात हुई कि तबेले की बला बंदर के सिर पड़ गई।
तुरत दान
महाकल्यान= (समय रहते किया गया कार्य उपयोगी साबित होता है)
प्रयोग- अच्छा लड़का मिल गया है तो जल्दी से तिथि
निकलवाकर बहन की शादी कर डालो। इंतजार करने में पता नहीं कौन-सी अड़चन कहाँ से आ
जाए। शुभ कार्य में 'तुरत दान महाकल्यान' ही जरूरी है।
तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर= (आय के अनुसार ही व्यय करना चाहिए)
प्रयोग- बेटी के विवाह में झूठी शान की खातिर माहेश्वर
ने कर्जा ले लिया और अब कर्जा न चुका पाने के कारण मकान गिरवी रखना पड़ा। बुजुर्गो
ने इसलिए कहा है कि 'तेते पाँव पसारिए, जैती लाँबी सौर'।
ताड़ से गिरा तो
खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)
तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)
तन पर नहीं लत्ता
पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)
तीन लोक से मथुरा
न्यारी= (निराला ढंग)
( थ
)
थोथा चना, बाजे घना= (वह व्यक्ति जो गुण और विद्या कम होने पर भी आडम्बर करे)
प्रयोग- हाईस्कूल में दो बार फेल हो चुका रामू बात कर
रहा था कि उसे सब कुछ याद है और वह इंटर के छात्रों को भी पढ़ा सकता है। ये तो वही
बात हुई- 'थोथा चना, बाजे घना'।
थका ऊँट सराय तके= (दिनभर काम करने के बाद मजदूर को घर जाने की
सूझती है।)
प्रयोग- दिनभर काम करने के बादराजू घर जाने के लिए चलने
लगा। ठीक ही है- 'थका ऊँट सराय तके'।
थूक कर चाटना ठीक
नहीं= (देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।)
( द
)
दाल-भात में
मूसलचन्द= (दो व्यक्तियों के काम की बातों में तीसरे आदमी
का हस्तक्षेप करना)
प्रयोग- मित्र, मैं तुम से पूछता हूँ, तुम्हें उन लोगों की बातचीत में, 'दाल-भात में मूसलचन्द' की तरह कूदने की क्या जरूरत थी? दोनों बात कर रहे थे, करने देते।
दीवारों के भी कान
होते हैं= (गुप्त परामर्श एकांत में धीरे बोलकर करना
चाहिए)
प्रयोग- अरे राम! जरा धीरे बोलो, क्या जाने कोई सुन रहा हो, क्योंकि ' दीवारों के भी कान होते हैं'।
दुधारू गाय की लात
भी सहनी पड़ती है= (जिस व्यक्ति से लाभ होता है, उसकी कड़वी बातें भी सुननी पड़ती हैं।)
प्रयोग- कमाऊ बेटा है, लेकिन कभी-कभी झगड़ा कर बैठता है। अरे भाई, 'दुधारू गाय की लात भी सहनी पड़ती है'।
दूध का जला छाछ भी
फूँक-फूँक कर पीता है= (एक बार धोखा खाने के बाद बहुत सोच-विचार कर काम
करना)
प्रयोग- पिछली बार एक दिन की गैरहाजिरी में राजू को
दफ्तर से जवाब मिला था; इसलिए अब वह देरी से जाने से भी डरता है, क्योंकि 'दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है'।
दूध का दूध और
पानी का पानी= (सच्चा न्याय)
प्रयोग- कल पंचों ने दूध का दूध और पानी का पानी कर
दिया।
दूधो नहाओ, पूतो फलो= (आशीर्वाद देना)
प्रयोग- दादी बहू से आशीष के भाव से बोली, 'दूधो नहाओ, पूतो फलो'।
दूर के ढोल
सुहावने लगते हैं= (दूर के व्यक्ति अथवा वस्तुएँ अच्छी मालूम पड़ती हैं।)
प्रयोग- इतना पैसा उसके पास कहाँ है? गाँव का सबसे बड़ा आदमी है तो क्या हुआ- 'दूर के ढोल सुहावने लगते हैं'।
देर आयद, दुरुस्त आयद= (कोई काम देर से हो, परन्तु ठीक हो)
प्रयोग- रामू ने घर देरी से खरीदा, पर घर अच्छा है- 'देर आयद, दुरुस्त आयद'।
दोनों हाथों में
लड्डू होना= (दोनों तरफ लाभ होना)
प्रयोग- अब तो रोहन ने दुकान भी खोल ली, नौकरी तो वह करता ही था अतः अब उसके दोनों
हाथों में लड्डू हैं।
दो मुल्लों में
मुर्गी हराम= (एक चीज को दो या अधिक आदमी प्रयोग करें तो उसकी
खींचातानी होती है।)
प्रयोग- महेश की कार कभी ठीक नहीं रहती, क्योंकि उसे कई ड्राईवर चलाते हैं। ठीक ही है- 'दो मुल्लों में मुर्गी हराम'।
दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया= (रुपैया-पैसा ही सब कुछ है)
प्रयोग- आज के जमाने में कोई किसी को नहीं पूछता। आजकल
तो 'दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया'।
दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम= (अनिश्चय की स्थिति में काम करने पर एक में भी
सफलता नहीं मिलती)
प्रयोग- सुमित्रा ने नौकरी भी कर ली और उधर पत्राचार से
बीए की परीक्षा का फॉर्म भी भर दिया। परीक्षा की तैयारी के चक्कर में नौकरी भी छूट
गई और पूरी तरह से तैयारी न हो पाने के कारण पास भी न हो सकी। इसलिए कहा जाता है
कि जो भी काम करो मन लगाकर उसे पूरा करो। जो लोग एक से अधिक कामों में टाँग फँसाते
हैं वे न तो इसे पूरा कर पाते हैं और न उसे। क्योंकि 'दुविधा में दोऊ गए, माया मिली न राम'।
देखे ऊँट किस करवट
बैठता है?= (देखें क्या फैसला होता है?)
प्रयोग- किस पार्टी की सरकार बनेगी कुछ कहा नहीं जा
सकता। वोटों की गिनती के बाद ही तय होगा कि ऊँट किस करवट बैठता है।
दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)
दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली= ( काम साधारण, खर्च अधिक)
दूध का जला मट्ठा
भी फूंक-फूंक कर पीता है= (एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना)
देशी मुर्गी, विलायती बोल= (बेमेल काम करना)
( ध
)
धोबी का कुत्ता न
घर का न घाट का= (जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो)
प्रयोग- गाँव से आया रामू दिल्ली में आकर धोबी का
कुत्ता न घर का न घाट का जैसा हो गया है।
धोबी से पार न
पावे, गधे के कान उमेठे= (बलवान पर वश न चले तो निर्धन पर गुस्सा
निकालना)
प्रयोग- रमेश अपने साहब के सामने तो गिड़गिड़ाता रहता है
और चपरासी पर रौब डांटता है- 'धोबी से पार न
पावे, गधे के कान उमेठे'।
( न
)
नाच न जाने आँगन
टेढ़= (काम न जानना और बहाना बनाना)
प्रयोग- सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या ?कहा है: 'नाच न जाने आँगन टेढ़।'
न रहेगा बाँस न
बजेगी बाँसुरी= (झगड़े की जड़ को नष्ट कर देना)
प्रयोग- इस खिलौने पर ही बच्चों में रोजाना झगड़ा होता
है। इसे उठाकर क्यों नहीं फ़ेंक देते- 'न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी'।
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी= (असंभव शर्ते रखना)
प्रयोग- राजू ने कहा- यदि आप मुझे 8000 रुपये मासिक व्यय दें तो मैं इलाहाबाद
विश्वविद्यालय में पढ़ने जाऊँगा। पिताजी ने कहा- 'न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी'।
नौ नगद, न तेरह उधार= (उधार की अपेक्षा नगद चीजें बेचना अच्छा होता
है।)
प्रयोग- प्रेम किसी को भी उधार नहीं देता उसका तो एक ही
सिद्धांत है- 'नौ नगद, न तेरह उधार'।
न आगे नाथ न पीछे
पगहा= (जिसका कोई सगा-सम्बन्धी न हो)
प्रयोग- जज साहब अकेले ही थे- 'न आगे नाथ न पीछे पगहा'।
न आव देखा न ताव= (बिना सोचे-समझे काम करना)
प्रयोग- उसने 'न आव देखा न ताव' झट रामू को थप्पड़ मार दिया।
न ईंट डालो, न छींटे पड़ें= (यदि तुम किसी को छेड़ोगे, तो तुम्हें दुर्वचन अवश्य सुनने पड़ेंगे)
प्रयोग- केशव न ईंट डालता, न छींटे पड़ते, उसने पागल को छेड़ा तो उसे पत्थर खाना पड़ा।
न ऊधो का लेना, न माधो का देना= (किसी से कोई सम्बन्ध न रखना)
प्रयोग- शास्त्रीजी तो सिर्फ पढ़ाने से मतलब रखते हैं- 'न ऊधो का लेना, न माधो का देना'।
न घर का रहना न घाट
का= (बिल्कुल असहाय होना)
प्रयोग- मैं रामू की सहायता न करता तो वह 'न घर का रहता न घाट का'।
न तीन में न तेरह
में= (जिसकी कोई गिनती न हो)
प्रयोग- हमारा देश तो हिन्दुओं का है, मुसलमानों का है, अंग्रेज कौन होते हैं, 'न तीन में न तेरह में'।
न नामलेवा न पानी देवा= (जिसका संसार में कोई न हो)
प्रयोग- एक बार पंकज के गाँव में प्लेग फैल गया। उसके
घर के सब लोग मर गए। अब 'न कोई नामलेवा है और न पानी देवा'।
नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा= (एक दरिद्र किसी को क्या दे सकता है।)
प्रयोग- रामू ने कहा- हम तो खुद गरीब हैं, हम चंदा कहाँ से देंगे- 'नंगा क्या पहनेगा, क्या निचोड़ेगा'।
नया नौ दिन पुराना
सौ दिन= (नई चीजों की अपेक्षा पुरानी चीजों का अधिक
महत्व होता है।)
प्रयोग- बड़े-बड़े डॉक्टर आ गए हैं, लेकिन मैं तो उन्हीं वैद्य जी के पास जाऊँगा, क्योंकि ' नया नौ दिन पुराना सौ दिन'।
नादान की दोस्ती
जी का जंजाल= (मूर्ख की मित्रता बड़ी नुकसानदायक होती है।)
प्रयोग- कालू जैसे मूर्ख से दोस्ती करना तो नादान की
दोस्ती जी का जंजाल है।
नाम बड़ा और दर्शन
छोटे= (नाम बहुत हो परन्तु गुण कम या बिल्कुल नहीं
हों)
प्रयोग- लखपति बुआ ने विदा के समय भतीजों को बस एक-एक
रुपया दिया। ये तो वही बात हुई- 'नाम बड़ा और दर्शन
छोटे'।
नेकी और पूछ-पूछ= (भलाई करने में संकोच कैसा)
प्रयोग- डॉक्टर साहब सब मरीजों को दवा मुफ़्त देने की जब
पूछने लगे तो मरीज बोले- 'नेकी और पूछ-पूछ'।
नेकी कर, दरिया में डाल= (उपकार करते समय बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए)
प्रयोग- श्यामजी ने उत्तेजित होकर कहा- मियां साहब, उपकार अहसान के लिए नहीं किया जाता, नेकी करके दरिया में डाल देना चाहिए।
नौ दिन चले अढ़ाई
कोस= (बहुत सुस्ती से काम करना)
प्रयोग- राजू ने दस महीने में मात्र एक पाठ याद किया
है। यह तो वही बात हुई- 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस'।
नौ सौ चूहे खाके
बिल्ली हज को चली= (पूरी जिंदगी पाप करके अंत में धर्मात्मा बनना)
प्रयोग- कालू कितना बदमाश था, अब वृद्ध हो जाने पर वह धर्मात्मा बन रहा है-
ये तो नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली वाली बात है।
नंग बड़े परमेश्वर
से = (ईश्वर की बजाए, निर्लज्ज से डर कर रहना चाहिए)
प्रयोग-मतिराम एकदम घटिया व्यक्ति है। मैं उसे मुँह
नहीं लगाता और न उससे बात करता हूँ। ऐसे लोगों का भरोसा नहीं कब किसके सामने आपके
बारे में क्या बोल दें क्योंकि नंग बड़े परमेश्वर से, इनका क्या भरोसा?
न लेना एक न देना
दो= (कोई संबंध न रखना)
प्रयोग- भाई साहब का बड़ा बेटा गलत सोहबत में पड़ गया है
और भाई साहब उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे। हमें क्या? भुगतेंगे खुद ही। हमें तो उस लड़के से न लेना एक
न देना दो।
नानी के आगे
ननिहाल की बातें= (अपने से अधिक जानकारी रखने वाले के सामने
जानकारी की शेखी बघारना)
प्रयोग- कंप्यूटर के बारे में जो कुछ तुम बता रहे हो
मेरा छोटा बेटा तुमसे अधिक जानकारी रखता है। तुम्हारी इज्जत करता है इसलिए चुप है।
ध्यान रखो नानी के आगे ननिहाल की बातें करना शोभा नहीं देता।
नित्य कुआँ खोदना, नित्य पानी पीना= (प्रतिदिन काम करके पेट भरना)
प्रयोग-